वर्चुअल आइने के लिए कुछ मुखौटे

Dinesh Shrinet
2 min readNov 26, 2020

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ऑस्कर वाइल्ड के उपन्यास ‘द पिक्चर ऑव डोरियन ग्रे’ पर आधारित तस्वीर
ऑस्कर वाइल्ड के उपन्यास ‘द पिक्चर ऑव डोरियन ग’्रे पर आधारित एक तस्वीर

एक हम वो हैं जो ‘हैं’ और एक वो जो कि ‘दिखना’ चाहते हैं। ये जो ‘दिखने’ वाला मामला है, फेसबुक आने की वजह से बहुत आसान हो गया है। आप बड़ी आसानी से फेसबुक पर अपने लिए एक ‘सोप ऑपेरा’ या नई शब्दावली में कहें तो ‘वेब सिरीज़’ रच सकते हैं। यह सब कुछ बड़ा आसान सा है।

डोनाल्ड ट्रंप से लेकर पड़ोसी के कुत्ते तक देश-दुनिया के हर मुद्दे पर किसी पार्टी प्रवक्ता की तरह अपनी राय कायम करें और दूसरों दिमाग हिलाएं या बोले तो उन्हें पकायें। अपने इमोशनल स्विंग्स को सारी दुनिया को बताएं। जैसे कि ‘आज मैं फलां खबर को पढ़कर बहुत अपसेट हूँ और इसीलिए आज मैंने रात को डिनर में बटर चिकन की जगह सिर्फ दाल मखनी खाई।’ पहाड़ी पर खडे़ होकर दोनों हाथ फैलाकर तस्वीर खिंचायें और लिखें फलां-फलां वादियों में मैं अकेला/अकेली (तो ये तस्वीर किसी भूत ने उतारी है?)…

पप्पू की दुकान पर समोसे और चाय भले ही रोज पीने जाते हों मगर तस्वीर आस्ट्रिच रेस्टोरेंट में ब्लैक हंटर टाइप की पेस्ट्री खाते हुए डालें। कोशिश करें कि ब्लू मैजिक, ब्लैक हंटर और यलो पैंथर टाइप के नामों का जिक्र अवश्य करें। कभी-कभी कनाट प्लेस और मंडी हाउस जैसी जगह में फुटपाथ पर बैठकर सेल्फी-वेल्फी ले लें। जिनता नीचे बैठ सकते हैं उतना बैठें और बताएं कि मैं कितना/कितनी डाउन टु अर्थ हूँ।

अपनी सुविधानुसार कभी फेमिनिस्ट, कभी कम्यूनिस्ट, कभी समाजवादी तो कभी गांधीवादी बन जाएं। जिधर भीड़ ज्यादा देखें वहीं झंडा लेकर नारे लगाने लगें- आइ़डियोलॉजी और विचारक गए तेल लेने। भले आपकी आवाज पर कौए को ईर्ष्या होती हो और बोलने के तरीके पर जुगाली करती भैंस शर्मा जाती हो मगर हफ्ते में एकाध लाइव वीडियो जरूर ठोंकते रहें। थर्ड क्लास क्वालिटी वाले सेल्फी कैमरे के सामने ऐसी ओवरएक्टिंग करें कि बॉलीवुड का सबसे बुरा एक्टर भी देखकर दो बार सुसाइड कर ले।

यदि इतने से मन न भरे तो दूसरों की वाल पर चेपी गई उक्तियां चुराकर अपनी वॉल पर पोस्ट करें। याद रखें कि वो अंगरेजी में हों। सेलेक्शन का सबसे बेहतर तरीका यह होगा कि वो उक्ति आपको खुद भी समझ में न आए।

कुछ काल्पनिक शत्रु पालें। (“वो मेरी पोस्ट पर हमेशा यही सोचकर कमेंट करता है”) कुछ मुद्दों पर बहस करें। कुछ बहसों में खुद से कूद जाएं। लोगों को बताएं कि क्या लिखना सही है क्या गलत। जो पॉपुलर हैशटैग हो उस पर खुद भी बक़ौल ग़ालिब “बक रहा हूँ जुनूँ में क्या क्या कुछ, कुछ न समझे ख़ुदा करे कोई” वाले अंदाज में लिखें।

इतना काफी है। अपनी जिंदगी की भले बैंड बजी हुई हो… वर्चुअल वर्ल्ड में कूल, इंटैलेक्चुअल, कन्सर्न्ड नजर आना जरूरी है। असलियत तो मिलने, बातचीत करने और जानने के बाद पता चलती है। आजकल इतना वक्त किसके पास है?

फेसबुक की पोस्ट — 20 अक्तबर 2017 में लिखी

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Dinesh Shrinet

writer and journalist, writes on art, cinema and popular culture