पितृसत्तात्मकता और दो फिल्में

Dinesh Shrinet
3 min readNov 26, 2020

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फिल्म ‘सिक्रेट सुपरस्टार’ का एक दृश्य

दो फिल्मों की तुलना करना एक दिलचस्प शगल हो सकता है। कई बार इस खेल में दोनों ही फिल्मों की छिपी हुई खूबियां उजागर होने लगती हैं। ‘सीक्रेट सुपरस्टार’ देखते हुए मुझे लगातार अपनी सबसे प्रिय फिल्मों से एक ‘उड़ान’ की याद आती रही।

ऊपरी तौर पर दोनों में बहुत फर्क है। ‘उड़ान’ एक यथार्थवादी फिल्म है, जबकि ‘सीक्रेट सुपरस्टार’ अति भावुक, मुस्कान में दबी करुणा वाली। ‘उड़ान’ में कोई महिला किरदार नहीं हैं, यहां दो सबसे प्रमुख चरित्र स्त्रियां हैं। लेकिन जब भीतर उतरते हैं तो पाते हैं कि बहुत कुछ एक है। सबसे ज्यादा साम्यता है हिंसा में। एक ऐसी हिंसा जो रिश्तों में गुंथी-लिपटी सामने आती है।

इस हिंसा को पहचानना इतना मुश्किल होता है कि फिल्म में भी पिता के आतंक से सहमी इंसिया यानी जायरा एक जगह उनके बारे में कहती है- “…इतने भी बुरे नहीं हैं वो!” यही वजह है कि नज़मा इस हिंसा भरी दुनिया को ही अपनी दुनिया के रूप में स्वीकार लेती है। इस फिल्म की खूबी है कि यह किसी तरह की बनावट, मल्टी लेयर्ड स्ट्रक्चर, स्टाइलिश कैमरा वर्क का सहारा नहीं लेती। सीधे बिना लाग-लपेट के कहानी कहती है। ऐसी फिल्में लंबे समय तक याद की जाती हैं।

इस फिल्म को अर्से बात मां बेटी के रिश्तों की खूबसूरत बुनावट के कारण भी याद किया जाएगा। यह रिश्ता हमारी हिन्दी फिल्मों में लगभग गायब सा है। यदि दिखता भी है तो उसमें सच्चाई का अभाव रहता है। अक्सर रोने-धोने में ही इस रिश्ते को निपटा दिया जाता है। रोना-धोना यहां भी है मगर उसके साथ हंसी, शरारत और उम्मीदें भी हैं। जितनी उम्मीदें बेटी को हैं, उससे ज्यादा मां को हैं। वही उड़ने के सपने देखना सिखाती है और फिर सहमकर उसे ‘उड़ान’ भरने से रोकती भी है।

विक्रमादित्य मोटवानी की फिल्म ‘उड़ान’

विक्रमादित्य मोटवानी की फिल्म ‘उड़ान’ में भी मां और बेटे का रिश्ता है, मगर वहां मां अदृश्य है। वहां किशोर नायक के साथ छोटे भाई का कोमल रिश्ता है तो यहां एक टीनएज लड़की और उसके छोटे भाई के बीच कोमल संवेदनाओं को दर्शाया गया है। पुरुष या एक वयस्क का वर्चस्ववादी अहंकार, कठोरता और हिंसा ‘उड़ान’ और ‘सीक्रेट सुपस्टार’ दोनों में ही देखने को मिलता है। इसी के बरअक्स उम्मीदों की ‘उड़ान’ भी है। जायरा अपनी मां से कहती है- हम सुबह उठते ही इसलिए हैं कि जो सपने देखे उन्हें जी सकें, उन्हें पूरा कर सकें।

फिल्म के संवाद बड़े ही खूबसूरत है। जायरा के बचकाने तर्कों में जीवन का पूरा दर्शन छिपा होता है। फिल्म के संवादों में एक किस्म का अंडरकरंट है। जब अपने पति की हिंसा का पहली बार भरे एयरपोर्ट में जवाब देकर नज़मा बाहर निकल रही होती है और सिक्योरिटी गार्ड कहता है — बाहर निकलने के बाद आप वापस भीतर नहीं आ सकतीं… तो उसका जवाब- “इससे अच्छी बात क्या हो सकती है।” एक शानदार संवाद है जो एक कौंध की तरह पूरी फिल्म, उसके चरित्रों और परिस्थितियों को हमारे सामने फिल्म के मूल संदर्भों के साथ रख देता है।

सपने और हास्य ही हर तानाशाही का जवाब होते हैं। चाहे वह घर के भीतर की तानाशाही हो या किसी देश और समाज की… और फिल्म इन दोनों की आंतरिक ताकत को बखूबी उजागर करती है।

फेसबुक से — 21 अक्तूबर 2017

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Dinesh Shrinet

writer and journalist, writes on art, cinema and popular culture